यार तुम ऐसे कैसे जा सकते हो. तुम इतने लोगों के लिए प्रेरणा थे. तुम्हारा किरदार मेरे लिए बहुत बड़ा प्रेरणा है. एम एस धोनी मूवी के बाद लगने लगा था जैसे तुम ही असली धोनी हो. न जाने कितनी दफा उस मूवी को मैंने देखा. शायद हर बार जब मन थोड़ा दुखी होता है...जब निराशा होती है...जब ज़िन्दगी थोड़ी परेशान करती है. उस एक मूवी को देखने के बाद कई बार मैंने अपना मूड ठीक किया है और खुद को संभाला है. एक-एक डायलॉग मुझे याद है..शायद धोनी रियल लाइफ में उतने प्रेरक नहीं लगते जितने तुम उस मूवी के बाद लगने लगे...और वजह सिर्फ तुम थे...
"नौकरी के लिए आउट थोड़ी हो जाएंगे"
और खड़गपुर स्टेशन पर अनिमेश बाबू से वो बातचीत - "अरे तुम्हारा गेम सुधरा ही कब था..यही तो तुम्हारा खासियत है कि तुम एकदम नेचुरल खेलता है"
और उसके बाद तुमने वो ट्रेन पकड़ ली.
मोहब्बत तो तुमसे उस मूवी से ही हो गई थी और फिर आई छिछोरे जिसने न जाने कितने लोगों को डिप्रेशन का मतलब समझाया.मेन्टल हेल्थ का महत्त्व समझाया और जीना सिखाया. हार-जीत ही ज़िन्दगी में सब कुछ नहीं होता. हम लड़े और ज़िन्दगी को जिया ये महत्वपूर्ण है.
"ज़िन्दगी में सबसे ज्यादा कुछ महत्वपूर्ण होता है तो खुद वो ज़िन्दगी होती है"
कोई सोच भी नहीं सकता की ऐसे किरदार को जीने वाला शख्स भी कभी इतना निराश और अकेला हो सकता है कि किसी दोपहर वो अचानक से हमें छोड़ कर चला जाए. ज़िन्दगी कभी इतनी भारी लगने लगे की हम उसे एक बोझ समझने लगे.
पैसा शौहरत सब आपको पल भर की खुशी ही दे सकती है. सुशांत के पास इस सबकी कोई कमी नहीं थी. लेकिन शायद वो अंदर से इतने अकेले हो गए थे कि उन्हें जीना मुश्किल लगने लगा. अपने आसपास के लोगों को सुनिए, उनसे बात कीजिये, उन्हें कभी यह न लगे कि ज़िन्दगी बोझिल है.
तुम हमेशा जिंदा रहोगे...
अलविदा सुशांत ♥️
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