Wednesday, May 27, 2020

क्यों नाराज हैं डब्ल्यू.एच.ओ से अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप?

ट्रम्प ने WHO को दिए जाने वाले फंड को रोका, कोविड-19 को फैलने से रोकने में लगाया लापरवाही का आरोप

16 अप्रैल 2020

व्हाइट हाउस के लॉन में कोरोना के मुद्दे पर हर दिन होने वाली प्रेस ब्रीफिंग में अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने बुधवार को एक बड़ा ऐलान कर दिया।ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को दी जाने वाली अमेरिकी फंडिंग पर फिलहाल रोक लगा दी है। ट्रम्प ने WHO को कोरोना वायरस फैलने के लिए ज़िम्मेदार ठहराते हुए कहा कि कोरोना के सम्बन्ध में WHO के प्रबंधन की गलती और दुनिया से जरूरी जानकारी छुपाने की जब तक समीक्षा नहीं हो जाती, अमेरिका WHO को कोई आर्थिक मदद नहीं देगा। ट्रम्प ने यह आरोप भी लगाया कि WHO ने चीन की गलतियों पर पर्दा डाला और समय रहते दुनिया को कोरोना वायरस के खतरे की गंभीरता के बारे चेतावनी नहीं दी जिसके कारण वायरस दुनिया में फैल गया और इतना नुकसान हो रहा है।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका प्रति वर्ष 50 करोड़ डॉलर तक की धनराशि WHO को देता है जोकि विश्व में सबसे अधिक है। ऐसे समय में, जब दुनिया एक बड़ी महामारी से जूझ रही हो, 20 लाख से अधिक लोग वायरस से संक्रमित हैं और सवा लाख से ऊपर लोगों की जान जा चुकी है और अकेले अमेरिका में 26 हज़ार से ज्यादा लोग कोरोना के कारण जान गँवा चुके हैं, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प के इस फैसले की कड़ी आलोचना हो रही है।

ट्रम्प के फैसले पर क्या है भारत-चीन समेत दुनिया के देशों की प्रतिक्रिया

हालाँकि भारत ने ट्रंप के इस फैसले पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है लेकिन सरकार के सूत्रों ने 'इंडियन एक्सप्रेस' को बताया है कि इस वक्त हमारी प्राथमिकता कोविड-19 से लड़ने की है। अभी हम पूरी ताकत से इस बीमारी से देश को मुक्त करने में लगे हैं। ऐसे मुद्दों पर हम बाद में ध्यान देंगे। वैसे भारत भी डब्ल्यू.एच.ओ से कोई खास खुश नहीं है.   

                                                         फोटो - इन्डियन  एक्सप्रेस

उधर, चीन ने अमेरिका के फैसले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। चीन ने WHO के काम को कोरोना से लड़ने में सराहा है और कहा है कि अमेरिका के इस फैसले का खामियाजा खुद अमेरिका को भी भुगतान पड़ेगा. ऐसे समय में, जब खुद अमेरिका इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है और उन गरीब देश जहां WHO की
मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है क्योंकि उनका हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर उतना मजबूत और सक्षम नहीं है, अमेरिकी फैसले की सबसे अधिक कीमत उन देशों को ही चुकानी पड़ेगी। चीन ने WHO को दी जाने वाली आर्थिक मदद बढ़ाने के भी संकेत दिए हैं। चीन एक तरीके से WHO के पीछे खड़ा दिख रहा है क्योंकि ट्रम्प लगातार इस बीमारी को फैलने से रोकने में चीन पर लापरवाही का आरोप लगा रहे हैं और कोविड-19 को चीनी वायरस बता रहे हैं।

यही नहीं, संयुक्त राष्ट्र, यूरोपियन यूनियन, रूस और अफ्रीकन यूनियन ने भी अमेरिका के इस फैसले की टाइमिंग पर सवाल उठाये हैं। सच यह है कि जब विश्व एक बड़े स्वास्थ्य संकट से गुज़र रहा है, हज़ारों लोग प्रतिदिन मर रहे हैं और WHO की भूमिका उससे लड़ने में बहुत महत्वपूर्ण है, उस समय WHO को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद की जरूरत थी लेकिन इसके उलट अमेरिकी फंडिंग पर पर रोक लगा देने के फैसले को कोई सही नहीं ठहरा रहा है। खासकर अफ्रीका जहां WHO सबसे ज्यादा पैसा खर्च करता है और वहां की स्वास्थ सेवाएं अच्छी नहीं हैं।

क्यों WHO पर लग रहे हैं लापरवाही के आरोप ?

अमेरिका के आर्थिक मदद रोकने के फैसले का कई देश विरोध तो कर रहे हैं लेकिन वो WHO की लापरवाही पर भी सवाल उठा रहे हैं। बहुत सारे देशों ने संक्रमण फैलने के शुरुआत में ही चीन से आवाजाही पर रोक लगा दी थी लेकिन WHO ने इस बीमारी के फैलने की आशंका पर चीन से आवाजाही पर रोक लगाने के बाबत कोई सुझाव या चेतावनी जारी नहीं की। यही नहीं, WHO के गाइडलाइंस को भी बहुत देश फॉलो नहीं कर रहे हैं। WHO की भारतीय इकाई ने जनवरी में भारत को बताया कि यह बीमारी लोगों से लोगों में नहीं फैलती। 

डब्ल्यू.एच.ओ पर यह भी आरोप है कि उसने सही समय पर इस बीमारी की गंभीरता के बारे में दुनिया को आगाह नहीं किया और लगातार चीन का बचाव करता रहा। WHO ने अभी तक कहा है कि सिर्फ संक्रमित व्यक्ति को ही मास्क पहनने की आवश्यकता है लेकिन भारत में आईसीएमआर ने अपने गाइडलाइंस में उन सभी लोगों के लिए जो घर से बाहर जा रहे हों, उन्हें अनिवार्य रूप से मास्क पहनने की सलाह दी है। अमेरिका ने WHO के महानिदेशक डा. टेड्रोस अधानोम पर चीन के पक्ष में काम करने और कोरोना के मामले में राजनीति करने के आरोप लगाया है।

कौन हैं डा. टेड्रोस अधानोम और क्यों हैं विवादों में ?

टेड्रोस अधानोम WHO के महानिदेशक हैं। अफ़्रीकी देश- इथियोपिया के नागरिक टेडरोस 2017 में चीन की मदद से इस कुर्सी पर पहुंचे थे। इससे पहले टेडरोस इथियोपिया में स्वास्थ्य मंत्री और विदेश मंत्री भी रह चुके थे। पहले भी टेडरोस के मानवाधिकार संबंधी विचारों पर सवाल उठते रहे हैं जैसे अभी चीन को बचाने को
लेकर उठ रहे हैं। टेडरोस ने अपने ऊपर लग रहे आरोपों का जवाब देते हुए कहा है कि उन्होंने तत्परता से कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और कुछ लोग उन्हें इसलिए पसंद नहीं करते क्योंकि वो एक अफ्रीकी हैं। उन्होंने इसके पीछे अमेरिका की राजनीति को ज़िम्मेदार ठहराया है। टेडरोस ने अपने WHO के चुनाव में भी अफ्रीकन मूल के मुद्दे को उठाया था जिसका उन्हें फायदा भी मिला था।

                                                     फोटो - द हिन्दू

ट्रम्प के फैसले का असर किस पर पड़ेगा ?

अमेरिका के इस फैसले का सबसे ज्यादा प्रभाव अफ्रीकी देशों पर पड़ेगा। अफ्रीकी देशों में WHO स्वास्थ्य योजनाओं पर लगभग 1.6 अरब डॉलर से भी अधिक खर्च करता है। अफ्रीका में ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं है. ऐसे में, इस संकट की घड़ी में इसका सीधा असर गरीब देशों पर पर पड़ेगा जो कोरोना महामारी को झेल रहे हैं। भारत जैसे देश और दक्षिण पूर्व एशिया में WHO लगभग 37.5 करोड़ डॉलर खर्च करता है। इस क्षेत्र के विकासशील देशों पर भी इसका असर पड़ सकता है।

WHO को कहां से मिलता है कितना पैसा ?

WHO को दुनिया भर में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने, बीमारियों से लड़ने और लोगो को स्वास्थ्य के प्रति
जागरूक करने के लिए दुनिया भर के देशों, परोपकारी संगठनों, यूएन के अन्य संगठनों से पैसे मिलते हैं।WHO को मिलने वाले कुल फंड में अकेले अमेरिका 15 फीसदी मदद देता है. उसके बाद देशों में यूके सबसे अधिक पैसा WHO को देता है। बिल गेट्स फाउंडेशन WHO को आर्थिक मदद करने के मामले में 9.7 फीसदी के साथ दूसरे नम्बर पर है। ऐसे में, अमेरिका की आर्थिक कटौती का बड़ा असर WHO के कार्यो पर पड़ेगा।

कोरोना जैसे मुद्दे पर क्यों हो रही है राजनीति ?

अमेरिका ने कोरोना के खतरे को शुरुआत में गंभीरता से नहीं लिया और ट्रम्प इसका आरोप WHO की गाइडलाइंस को बता रहे हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प कोरोना के रोकथाम में अबतक सफल नहीं दिख रहे हैं। उन्हें अमेरिका के अंदर राज्यों के गवर्नरों और विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी अमेरिकी अर्थव्यवस्था बिल्कुल चरमरा सी गई है। केवल पिछले 24 घंटे में 2400 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है। घरेलू मोर्चे पर असफल होते ट्रम्प ने WHO और चीन को आड़े हाथ लेते हुए
जमकर भड़ास निकालना शुरू कर दिया है. एक तरीके से ट्रम्प की कोशिश है कि इस महामारी का आरोप चीन और WHO पर लगाकर खुद को होने वाली राजनीतिक नुकसान को कम कर सकें। अमेरिका में इसी साल के अंत में राष्ट्रपति चुनाव भी होना है, इसलिए ट्रम्प के लिए यह बहुत बड़ी राजनीतिक चुनौती है।

                                                फोटो - डेडलाइन

शिकागो में रहने वाले विश्व कुमार बताते हैं कि अमेरिका में सरकार और लोग दोनों ने शुरूआत में कोरोना को बहुत हल्के में लिया। WHO की गाइडलाइंस बहुत बाद में आई, तब तक अमेरिका में कोरोना पैर पसार चुका था। अमेरिका के मैनुफैक्चरिंग सेक्टर में चीन का बहुत बड़ा शेयर है. ऐसे में, चीन पर लग रहे आरोपो को खारिज नहीं किया जा सकता है। चीन इस वक्त अमेरिका में बहुत ज्यादा पैसा इन्वेस्ट कर रहा है। चीन भी अमेरिका को जिम्मेदार ठहराने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा। उसका WHO महानिदेशक के पक्ष में खुलकर आना और अमेरिकी पत्रकारों को देश छोड़ने के लिए फरमान सुना देना स्पष्ट करता है कि इस मुद्दे पर चीन अमेरिका के सामने झुकने को तैयार नहीं है। 

चाहे कोरोना संक्रमण और मौतों के आंकड़े छुपाने का आरोप हो या दुनिया को कोरोना पर भ्रमित करने का आरोप- चीन अपनी गलतियों को मानने के लिए तैयार नहीं दिख रहा है और आक्रामक रूप से इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दे रहा है। फिलहाल, यह समय टलने के बाद इसका असर वैश्विक राजनीति पर अवश्य दिखेगा। चीन और अमेरिका के बीच छिड़ चुकी इस लड़ाई का परिणाम वैश्विक राजनीति पर क्या होगा, यह बाद में पता चलेगा। 


अभी हमें प्रार्थना करना चाहिए कि यह संकट मानवजाति को कम से कम नुकसान पहुंचाए और जल्दी से टल जाए। 

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